कविता: झाडे लावुया!

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झाडे लावुया!

या मित्रांनो, मानव जात एकवटुया!

एक होऊनि झाडे लावुया!धृ!

 

एकेक वृक्ष, प्राणवायूचे कक्ष!

तया अभावी आपले जीवन रुक्ष!

या बाळांनो, यारे सारे या!

प्रथम आपण झाडे लावुया!१!

 

नाही उरलं शुद्ध हवा पाणी!

फुका जातो रं जीव गुदमरोनि!

वृक्ष देई अन्न वस्त्र निवारा!

या सुंदर सृष्टीची शान वाचवुया!२!

 

  दर वर्षी पाऊस पडतो कमी!

  पीके येण्याची ना कुणा हमी!

  मस्त गार पाऊसात भिजाया!

  या आधी वृक्षारोपण करुया!३!

 

  वृक्ष लागवडीची मानवाशी मती!

 इतर जीवासम ना होऊ मंदमती! 

 मानवाची आम्ही बुद्धी जागवुया!

 वृक्ष संवर्धनाची मग आण घेउया!४!

 

  लवलवती वृक्ष वेली फळे फुले!

 पाहून आपले मनमोर डुले डुले!

 म्हणे श्रीकृष्णदास दंग राहुया!

 मानवी अस्तित्व असे टिकवुया!५!

 

        

            —   बापू- श्रीकृष्णदास निरंकारी.

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