
सिद्धांत
मुंबई २५ डिसेंबर २०२१: भारताचे माजी पंतप्रधान, भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी यांचा आज जन्मदिवस. भारताच्या राजकीय इतिहासातील एक महत्त्वाचे राजकीय असल्याबरोबरच ते एक उत्तम कवी होते. अनेकदा आपल्या भाषणातून विरोधकांना आपल्या कवितांच्या माध्यमातून ते उत्तर देत असत. त्याच्या कवितांमधून ते प्रखर राष्ट्रप्रेम, देशातील नागरिकांमधील बंधुभाव, माणुसकी याबाबतचे विचार ते मांडत असत. आज त्यांच्या जन्मदिवसाच्या निमित्ताने अटल बिहारी वाजपेयी यांच्या प्रसिद्ध कवितांवर टाकलेली एक नजर.
“भारत जमीन का टुकड़ा नहीं ” या भारताचे शब्दवर्णन करणाऱ्या कवितेत वाजपेयी म्हणतात,
भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,
जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।
हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है,
पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं।
यह चन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है,
यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है।
हम जियेंगे तो इसके लिये
मरेंगे तो इसके लिये।
“मौत से ठन गई” या कवितेत वाजपेयी माणसाच्या स्वाभिमानाच्या, जिद्दीच्या आत्मविश्वासाच्या गोष्टी मांडताना म्हणतात कि,
ठन गई!
मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था।
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।
तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर, फिर मुझे आज़मा।
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।
एकमेकांमधील बंधुभाव, विश्वास वाढवण्याचा आणि नव्याने सुरुवात करण्याची प्रेरणा देणाऱ्या “आओ फिर से दिया जलाएँ” या कवितेत वाजपेयी लिहितात,
आओ फिर से दिया जलाएँ
भरी दुपहरी में अँधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें-
बुझी हुई बाती सुलगाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ
हम पड़ाव को समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आँखों से ओझल
वर्त्तमान के मोहजाल में-
आने वाला कल न भुलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ।
भारतीय स्वातंत्र्यलढ्यात आपली जीवाची बाजी लावून लढलेल्या स्वातंत्र्य सैनिकांच्या त्यागाची आठवण ते आपल्या “उनकी याद करें” या कवितेत करून देतात.
जो बरसों तक सड़े जेल में, उनकी याद करें।
जो फाँसी पर चढ़े खेल में, उनकी याद करें।
याद करें बहरे शासन को,
बम से थर्राते आसन को,
भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरू
के आत्मोत्सर्ग पावन को।
अन्यायी से लड़े,
दया की मत फरियाद करें।
उनकी याद करें।
मानवातील एकजूटपणा, मित्रत्व आणि समाजातील सर्व घटकांमधील सलोख्याचे नाते याबाबत आपल्या ” पहचान या कवितेत ते म्हणतात
आदमी न ऊंचा होता है, न नीचा होता है,
न बड़ा होता है, न छोटा होता है।
आदमी सिर्फ आदमी होता है।
पता नहीं, इस सीधे-सपाट सत्य को
दुनिया क्यों नहीं जानती है?
और अगर जानती है,
तो मन से क्यों नहीं मानती
किसी संत कवि ने कहा है कि
मनुष्य के ऊपर कोई नहीं होता,
मुझे लगता है कि मनुष्य के ऊपर
उसका मन होता है।
छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता,
टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता।
देशातील जनतेच्या पाठींब्याने निवडून आल्यावर जनतेच्या प्रश्नांकडे दुर्लक्ष करण्याच्या सत्ताधारी राजकीय वृत्तीला जाब विचारणाऱ्या ” सत्ता” या कवितेत ते म्हणतात.
मासूम बच्चों,
बूढ़ी औरतों,
जवान मर्दों की लाशों के ढेर पर चढ़कर
जो सत्ता के सिंहासन तक पहुंचना चाहते हैं
उनसे मेरा एक सवाल है :
क्या मरने वालों के साथ
उनका कोई रिश्ता न था?
न सही धर्म का नाता,
क्या धरती का भी संबंध नहीं था?
पृथिवी मां और हम उसके पुत्र हैं।
अथर्ववेद का यह मंत्र
क्या सिर्फ जपने के लिए है,
जीने के लिए नहीं?
सत्ता की अनियंत्रित भूख
रक्त-पिपासा से भी बुरी है।
पांच हजार साल की संस्कृति :
गर्व करें या रोएं?
स्वार्थ की दौड़ में
कहीं आजादी फिर से न खोएं।